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चाह ….

नई सोच का नया दायरा
नई सोच का नया दायरा
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चाह नहीं कुछ पाने की अब,

चाह नहीं रुक जाने की अब .Baby sparrow
भले तूफ़ान क्यूँ न रास्ता रोके ,
भले घटा क्यूँ न राह मे टोके ………..

मन कभी किसी से  डरे भी तो क्या –
कदम खुद आगे बढ़ जाते हैं ,
जहाँ रास्ते ना भी हो तो
वहां रास्ते  खुद बन जाते हैं ……..

समय के चाबुक से डरे भी तो क्या –
समय तो पीछे रह जाता है .
किसे पता कल आने वाला पल
किसका बलवान बन जाता है ……..

एक नन्ही  सी चिड़िया को मैंने आज
उड़ने की चाह मे अपने पंख फैलाये देखा,
उसके उड़ने की कोशिश ,
कहीं मेरे मन को भीतर ही भीतर
मेरे आत्मविश्वास को बढ़ा रही थी ….

मै उससे कह रही थी ,धीरे उठो ,पंख फैलाओ-
कोशिश करो उड़ने की,
ये जानते हुए की वो मेरा कहा हुआ नहीं समझ पा रही है ,
उड़ना चाह रही है पर उड़ नहीं पा रही है ……..

तभी एक और स्वर मेरे कानो मे पड़ा ,
शायद उसकी माँ का था ,
जो उससे ढूँढ़ते हुए वहां आ पहुंची थी,
अब मै थोडा दूर जा कर सब देख रही थी ,
मेरे दिल का स्पंदन और बड़ी चिड़िया का करुणा भरा स्वर ,
दोनों एक आवाज़ मे –
नन्ही चिड़िया को उड़ने के लिए कह रहे थे ……

माँ के आने से नन्ही ने अब फिर पंख फैलाए ,
इधर उधर देखते हुए कुछ चह-चहाया
जैसे उड़ान लेने से पहले साहस जमा कर
दुनिया से कह रही हो –
मै अब तैयार हूँ अपने सफ़र के लिए ,
जो मुझे अकेले ही तय करना है ,
मीलो उड़ना है ,हवा के संग बहना है ,
भले राहों मे आये तूफ़ान अनेक ,
मुझे तुफानो की दिशाओं के उलटे भी बढ़ना है ..
मुझे आज हर हाल मे उड़ना है .हर हाल मे उड़ना है…..

वजह नहीं रुक पाने की अब ,
चाह नहीं कुछ पाने की अब,

चाह नहीं रुक जाने की अब    .
…….श्रुति मोहन
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