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देखो आई मनभावन होली

नई सोच का नया दायरा
नई सोच का नया दायरा
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देखो आई मनभावन होली
मीठी हो गयी कोयल की बोली,
जो चुप रही इतने महीनो ,
आज डाल -डाल  जा -जा कर बोली .
हरतरफ सरसों ने देखो कैसी बिछाई सुन्दर रंगोली .
देखो आई मनभावन होली .

प्रकृति के साथ हरदम-मानव करता रहा कई खेल ,
आज प्रकृति ने सब भुला कर मानव  से खेली आँख मिचोली .
कभी  वो पलाश को महकाती ,कभी  महकाती  चंपा और चमेली .
फूलों के धनुष ने दिया बोझिल धरा को एक नया स्वरुप  ,
सबकुछ  भुला संसार ने बहुरंगी कर  लिया अपना रूप .
देखो आई मनभावन होली .

घर -आँगन में बजते ढोल ,हर आँगन में आई खुशहाली ,
कोई हाथ से गुलाल लगा रहा ,तो कोई बजाता ताली .
तुम भी खेलो रंगों से ,रंगों ने  मन में मिसरी घोली ,
देखो आई मनभावन होली .

बच्चे दौड़ें हाथ में लिए पिचकारी ,
मामी -मौसी की चुनरी रंग डाली सारी .
कुछ ने हाथों में पकडे रंगों के गुब्बारे ,
दादा -चाचा पर दे मारे सारे .
देखो आई मनभावन होली .

फाग आया तो मंगल गाओ ,
मधुर -मधुर  कोई तान सुनाओ ,
ये रुत  भी मदमस्त हो कर बोली .
नाचो ,गाओ और करो ठिठोली .
जितने चाहो मेरी झोली से लो रंग ,
रुको मत आज ,खुश रहो और जम कर खेलो होली .
देखो आई मनभावन होली .

देखो आई मनभावन होली … श्रुति मोहन (25-03-2013)

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