कभी वो पलाश को महकाती ,कभी महकाती चंपा और चमेली .
फूलों के धनुष ने दिया बोझिल धरा को एक नया स्वरुप ,
सबकुछ भुला संसार ने बहुरंगी कर लिया अपना रूप .
देखो आई मनभावन होली .
घर -आँगन में बजते ढोल ,हर आँगन में आई खुशहाली ,
कोई हाथ से गुलाल लगा रहा ,तो कोई बजाता ताली .
तुम भी खेलो रंगों से ,रंगों ने मन में मिसरी घोली ,
देखो आई मनभावन होली .
बच्चे दौड़ें हाथ में लिए पिचकारी ,
मामी -मौसी की चुनरी रंग डाली सारी .
कुछ ने हाथों में पकडे रंगों के गुब्बारे ,
दादा -चाचा पर दे मारे सारे .
देखो आई मनभावन होली .
फाग आया तो मंगल गाओ ,
मधुर -मधुर कोई तान सुनाओ ,
ये रुत भी मदमस्त हो कर बोली .
नाचो ,गाओ और करो ठिठोली .
जितने चाहो मेरी झोली से लो रंग ,
रुको मत आज ,खुश रहो और जम कर खेलो होली .
देखो आई मनभावन होली .
देखो आई मनभावन होली … श्रुति मोहन (25-03-2013)
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